Saturday, December 8, 2018

श्रद्धांजलि


लघुकथा                 
                            श्रद्धांजलि
                                           पवित्रा अग्रवाल

            स्कूल जाते बच्चे ने एक जगह बहुत सारे लोगों को मोमबत्ती जला कर खड़े देखा। उसने अपने पिता से पूछा  "बाबा दिन में इतने सारे लोग मोमबत्ती जला कर क्यों खड़े हैं ?'
            "बेटा पिछले दिनो बम धमाकों में जो लोग मारे गए थेउन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए यह लोग यहाँ इकट्ठे हुए हैं।'
            "उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए इतनी सारी मोमबत्तियां  जलाई हैं ?'
            "हाँ '
            "पर क्यों बाबा... अपने यहाँ तो पहले फूल चढ़ाते थे,मौन रखते थे अब ये मोमबत्ती क्यों ?'
            बाबा क्या कहें कि विदेशों की नकल करके अब श्रद्धांजलि देना भी यहाँ एक दिखावा बनता जा रहा है।'
            बाबा को चुप देख कर बच्चा पुन: बोला – ‘ बाबा यहाँ बहुत से घरों में अंधेरे में जलाने को एक मोमबत्ती नहीं होती और यहाँ सैकड़ो मोमबत्ती दिन में जलाई जा रही हैं।'

                   -----
                                               
   -पवित्रा अग्रवाल

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Wednesday, November 21, 2018

बेटी होती तो ?




लघुकथा  
               बेटी होती तो ?
                             
                           पवित्रा अग्रवाल

    महिला आश्रम में एक सामाजिक संस्था द्वारा महिला दिवस 
पर एक गोष्ठी रखी थी. उसमे बहुत सी महिलाएं आई थीं विषय 
था ‘ बेटियां’ किसी से कम नहीं ‘
  कार्यक्रम में आई बहुत सी महिलाएं एक स्वर में बेटियों की 
महिमा मंडन में लगी थीं. कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता था .
   एक महिला ने कहा - 'बेटी को माता पिता की बहुत चिंता 
रहती है शादी के बाद भी उनका ध्यान  पीहर में ही लगा रहता है '
    दूसरी महिला ने कहा ‘बेटा शादी होने तक ही अपना रहता है 
,बाद में तो वह अपनी पत्नी के स्वर में बोलने लगता है .
  आश्रम की महिलाओं से भी कुछ बोलने को कहा गया .कुछ 
महिलाएं भावुक हो गई थीं ,चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रहीथीं
 .संगठन की अध्यक्षा ने उन्हें कुछ कहने के उद्देश्य से पूछा – 
‘आप सब यहाँ क्यों हैं... आप के बेटे, बेटी  कहाँ हैं ?’
  महिलाओं की तरफ से कुछ जवाब न आने पर आश्रम की 
संचालिका ने कहा “सब की एक ही कहानी है. बेटे या तो विदेश में
 है या दूसरे शहर में हैं पर कहीं भी उन्हें अपने साथ रखने
 को तैयार नहीं है .
‘और बेटियां ?’
    एक महिला बोल पड़ी – ‘अरे यही तो रोना है . बेटी होती तो
 क्या हमें यहाँ रहने देती ?’
 अब तक शांत बैठी दूसरी महिला को गुस्सा आगया – ‘हाँ यदि
 बेटी होती तो शायद आप वहां ( बेटी के यहाँ ) होतीं और आप
 की बेटी की सास यहाँ होती ...जैसे मैं हूँ.’
                                -----
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Saturday, October 6, 2018

खामियाजा


   लघुकथा                
                 खामियाजा
                                                                    पवित्रा अग्रवाल
            ‘अरे यार बंसल बहुत दिनों बाद मिले हो ? कैसे हो ? बच्चे
 कहाँ हैं ?
  ‘एक बेटा कनाडा में है और एक अमेरिका में ‘
  ‘तो क्या तुम और भाभी यहाँ अकेले हो ?’
  ‘हाँ गुप्ता अब तो अकेले ही हैं और लगता है मरते दम तक
 अकेले ही रहेंगे.’
    ‘अरे ऐसा क्यों सोचते हो ...चल सामने के रेस्त्रां में बैठ कर
 चाय पीते है 
    रेस्टोरेंट में चाय का इंतजार करते गुप्ता को  बंसल से हुए
 एक पुराने  वार्तालाप की याद आगई .उसने कहा था ‘अरे गुप्ता
  तू तो पूरा कंजूस है ,इतना पैसा होते हुए भी बच्चों का कैरियर
 बनाने में पीछे रह गया .मेरे पास तो इतने साधन भी नहीं थे
 फिर भी पेट काट कर दोनों लड़कों को इंजीनियर बनाया है. दोनों
 को बड़ा अच्छा पैकेज मिला है .अब चैन से हूँ .बस दोनों की शादी
 और हो जाये ,अच्छी संस्कारी बहुएँ आजाये तो जिंदगी आराम से
 कटे.’
   उसने कहा था ‘ यार बेटे तभी तक अपने हैं जब तक शादी
  नहीं होती .’
   चाय आने के साथ ही उसका ध्यान भंग हुआ .बंसल ने पूछा 
  ‘ गुप्ता तुम्हारे बच्चे कैसे हैं, कहाँ हैं ?’
  ‘ यहीं हैं हमारे साथ.मैं ने तो ग्रेजुएशन करा के बाईस की
 उम्र में दोनों की शादी कर दी थी.घर के व्यापार में लगे हैं
 तो  भाग कर भी कहाँ जायेंगे ?...लोग मुझे हमेशा कंजूस
 कहते रहे क्यों कि मैंने बच्चों को डाक्टर ,इंजीनियर नहीं
 बनाया पर अब लगता है कि अच्छा ही किया ... ज्यादा 
पढाता तो कैरियर की तलाश में हमें छोड़ कर कहीं दूर जा
 बैठते. फिर इतने बड़े व्यापार का मैं क्या करता ?...अब दुःख
 तकलीफ में हम एक दूसरे के साथ तो हैं.’
  ‘शायद तुम ठीक ही कह रहे हो.  कभी कभी मुझे भी यही
 लगता है कि कहीं हम बच्चो को ऊंची शिक्षा दिलाने का
 खामियाजा तो नहीं भुगत रहे ?’

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Tuesday, September 25, 2018

जुगाड़

   लघुकथा                  
                                       जुगाड़
पवित्रा अग्रवाल

एक स्तंभ - लेखक से  पाठक ने पूछा--"आप अपने स्तंभ में किसी न किसी व्यक्ति पर कीचड़ क्यों उछालते रहते हैं ? लोगों का कहना है कि जिस से आपकी नही पटती या जो आपको महत्व नही देते आप  उनके खिलाफ लिख कर बदला लेते हैं...अब मुझे भी ऐसा लगने लगा है ,क्या यह सही है ?'

"नही ऐसा तो नही है।...आपको ऐसा क्यो लगा ?'
"पिछले दिनो आपने लिखा था कि समाज सेवी कृपा शंकर जी समाज सेवा का ढ़ोंग करते है। काम थोड़ा करते हैं पर  बढ़ा चढ़ा कर प्रचार करते हैं...
"मैं ने जो लिखा था वह गलत नही है ।'
"पर उन्हे तो समाज सेवा के लिये कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है। कई पत्रिकाओं में उनके साक्षात्कार भी प्रकाशित हुये हैं फिर उनको तो मैं व्यक्तिगत रूप से भी जानता हूँ ,वह एक नेक इंसान हैं।'
        "आप भी क्या बात करते हैं...आप नही जानते, कुछ लोग बड़े जुगाड़ू होते हैं । वैसे भी आज पैसे से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है .. फिर अपनी तारीफ में कुछ छपवाना तो और भी आसान है ।'
  " वह कैसे ?'
    "दारू पिला कर और मुर्गा खिला कर किसी से कुछ भी लिखवा लो।'
    "ओ....,लगता है उन्होंने आपको कुछ नही खिलाया - पिलाया.....।'
     
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Tuesday, August 14, 2018


लघुकथा 
                             समर्थ

पवित्रा अग्रवाल

विपिन के लौटते ही माँ ने रवि से कहा --"रवि तू तो कह रहा था कि तेरा दोस्त विपिन बहुत पैसे वाले घर का लड़का है,उसने कितनी घिसी हुई जीन्स पहन रखी थी,उसमें छेद भी हो रहा  था ।''
"हाँ माँ यह सच है वाकई वह बहुत पैसे वाले घर का लड़का है।उसके घर में दो एयर कंडीशन्ड कारें हैं,घर में ए.सी. लगे हैं।इस सब के बावजूद उसे रहीसी दिखाने का शौक नहीं है ,वह बहुत सिम्पिल लड़का है, घमंड तो उस में नाम मात्र को नहीं है।''
"तू भी कुछ सीख उस से ,तेरे तो कितने नखरे हैं।तेरी स्कूल यूनिर्फोम की पेंट कुछ ऊँची हो गई थी मैं ने इतनी मेहनत करके उसे खोल कर लम्बा किया फिर भी तूने उसे नहीं पहना और मुझे दूसरे खर्चो  में कटौती कर के नई पेन्ट खरीदनी पड़ी ।''
"अरे माँ वह पैसे वाले घर का लड़का है,उसकी घिसी जीन्स को फैशन या उसकी सादगी कहा जाएगा और हम पहन लें तो उसे हमारी आर्थिक कमजोरी समझा जाएगा।''
   'पर बेटा लोग कुछ भी सोचें .हम को अपनी हैसियत और जरुरत  के हिसाब से खर्च करना चाहिये '

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Tuesday, July 17, 2018

धमकी

लघुकथा
                        धमकी

                                             पवित्रा अग्रवाल

              अस्पताल में  एक आदमी  द्वारा डाक्टर को पीटते देख कर मरीजों के रिश्तदार परेशान हो गए---
 एक व्यक्ति चिल्लाया --"अरे आप डाक्टर को क्यों पीट  रहे हैं ?'
        "पीटें  नहीं तो क्या करें ..इनकी आरती उतारें ? जाने कहाँ कहाँ से आकर डाक्टर बन गए हैं ,इन्हों ने हमारे इकलौते बेटे की जान ले ली ।'
      दूसरे व्यक्ति ने तर्क दिया --"अस्पताल में आने वाला हर मरीज ठीक हो कर ही तो घर नहीं जाता ?'
    एक अन्य ने हॉ में हाँ मिलाई --"बिल्कुल,.. कुछ ठीक हो जाते हैं तो कुछ की मौत भी हो जाती है ।'
   "आप का बेटा तो चला गया... आप इस तरह मार-पीट करेंगे तो दूसरे बहुत से मरीज बेमौत मारे  जाएगे ।'
 "वो कैसे ?'
 "आप मारपीट और तोड़-फोड़ करेंगे तो सब डाक्टर्स हड़ताल पर चले जाएगे फिर दूसरे मरीजों का  क्या होगा ?'
 "आप लोग कौन हैं  ?'
 "हम यहाँ पर भर्ती मरीजों के रिश्तेदार हैं ..दूर हटिए हम आप को डाक्टर से मार-पीट नहीं करने  देंगे..अभी पुलिस को फोन  करते हैं  ।'
 "हाँ भैया  यदि आपका बेटा डाक्टर की गल्ती से मरा है तो आप कम्पलेन्ट कीजिए पर....'
      अपने को अकेला पड़ते देख कर वह झुंझला कर बोला   -- "आप मुझे जानते नहीं ,मैं एसे चुप नहीं बैठूँगा,... मेरी पहुँच बहुत दूर तक  है... अभी  आता हूँ ।'

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Sunday, June 10, 2018

औचित्य

लघुकथा  
                        औचित्य                                        
                                                  पवित्रा अग्रवाल

     एक  किट्टी  पार्टी में विवाह पूर्व जन्मपत्री मिलाने न मिलाने के औचित्य पर चर्चा चल रही थी।
 मिसेज अग्रवाल ने कहा-"हमारे पड़ौसी के बेटे ने लव मैरिज की थी।जन्मपत्री मिलाने का तो मौका ही नही आया।एक वर्ष बाद ही उसकी पत्नी की मौत हो गयी।'
मिसेज खंडेलवाल बोली-"हमारी नन्द को जन्मपत्री मे विश्वास नही है।उनके एक ही बेटा है।उन्होने बिना जन्मपत्री मिलाये शादी की थी।शादी के आठ वर्ष हो गये उस के कोइ संतान नही है।बाद मे बहू की जन्मपत्री पढ़ी तो ज्ञात हुआ कि उस की पत्री मे तो साफ लिखा है कि भाग्य मे संतान सुख नही है जब कि बेटे की जन्मपत्री मे संतान का योग है।अब मेरी नन्द पछताती हैं।'
     बहुत देर से यह बहस सुन रही नम्रता एक दम से बीच मे बोल पड़ी-"सब बकवास है।मेरी शादी तो अच्छी तरह जन्मपत्री मिला कर हुयी थी।मेरे पति की जन्मपत्री मे दो संतानो का व मेरी पत्री मे तीन संतानो का सुख मिलने की बात कही गयी थी....शादी के बारह वर्ष हो गये पर हमारे एक भी संतान नही है।'
   "नही है तो हो जायेगी ...अभी कौन सी तुम्हारी उम्र निकल गयी।...शादी के पन्द्रह-बीस वर्ष बाद तक बच्चे होते सुने गये हैं'-अर्चना ने कहा
  "अरे सुने क्या गये है....मेरी बहन के साथ तो एसा हुआ है ...वह तो बहुत निराश हो गयी थी या कहो उस ने तो आशा ही छोड़ दी थी...शादी के चौदह वर्ष बाद वह माँ बनी।'
     विषय बदल चुका था अब किट्टी पार्टी की महिलायें शादी के बहुत वर्षो बाद अपने परिचितो, रिश्तेदारो के माँ बनने के उदाहरण देने मे व्यस्त हो गयी थीं।
     किन्तु नम्रता की उस चर्चा में तनिक भी रुचि नही थी क्यों कि वह जानती है कि वह मॉ नही बन सकती।यह बात डाक्टर भी कह चुके हैं। 
     -पवित्रा अग्रवाल
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Thursday, May 10, 2018

दाइत्व

लघुकथा            
                         दाइत्व     
       
                                       - पवित्रा अग्रवाल 

     कराहते हुये माँ ने कहा -"मधु अब टीवी के सामने से उठ भी जा । तेरे पापा के आने का समय होगया है और अभी आटा तक नही मला है।'
 " मम्मी थोडी देर ठहर जाओ न आज मदर्स डे है ...टीवी पर बड़ा अच्छा प्रोग्राम आरहा है,कइ फिल्मी सितारे अपनी मम्मियों के साथ इसमे भाग ले रहे हैं।'
    मॉ चुपके से रसोइ मे चली गयी और परात मे आटा निकालते हुये सोचने लगी कि बच्चे कितने संवेदनहीन होते जारहे है "मदर्स डे' का ये दिन भी बेटी को बीमार माँ के प्रति दायित्व का अहसास नही करा पाया। तभी मधु आगयी -"हटो मम्मी आटा मै मल लूँगी ...आपको डाक्टर ने आराम करने  को कहा है।'
     "वो तेरा मदर्स डे का टीवी प्रोग्राम ....
 "सॉरी माँ मै तो दूसरो की मदर्स का प्रोग्राम देख रही थी और भूल ही गयी थी कि इस समय मेरी माँ को मेरी जरूरत है और मुझ को आपके साथ होना चाहिये । '

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Monday, April 9, 2018

मोहभंग



लघुकथा
                 मोहभंग
                              
                पवित्रा अग्रवाल

सुबह की सैर के समय दोस्त स्मिता ने पूछा --
 ‘पूनम ,आज अहोई आठें हैं ,तुमने तो व्रत रखा होगा ?’
‘नहीं स्मिता  इस बार नहीं रखा .’
‘तुम तो हमेशा बड़ी श्रद्धा से यह व्रत रखती थीं ,इस बार क्यों नहीं ?’                            
         
'बस ऐसे ही ,अब भूखा नहीं रहा जाता ’
‘नहीं पूनम  बात तो कुछ और है ,तू बहुत उदास भी दिख रही है ’
‘अब क्या बताऊँ, इन व्रत उपवासों से  मोहभंग हो गया है .एक ही बेटा है जिस के जन्म लेने से पहले ही उसके पिता की मौत हो गई थी .माता पिता ने दूसरी शादी करने के लिए बहुत जोर डाला था पर बेटे के प्रति फर्ज और ममता ने कुछ नहीं सोचने दिया .आज वही बेटा दूर बहुत दूर अपने बीबी बच्चों के साथ अमेरिका जा बैठा है और कभी दिखाने को भी नहीं कहता कि अब आप को मेरे साथ रहना है ‘
  ‘पता नहीं बच्चे इतने संवेदनहीन और स्वार्थी कैसे हो जाते है’
 ‘अब तक तो माँ थी और नौकरी भी .अब न नौकरी रही न माँ .बहुत अकेली हूँ '                           
                            
  
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Sunday, March 18, 2018

धमकी

लघुकथा 
                       धमकी
                                       पवित्रा अग्रवाल

              अस्पताल में कुछ लोगों द्वारा डाक्टर को पीटते देख कर मरीजों के रिश्तेदार परेशान हो गए---
 एक व्यक्ति चिल्लाया --"अरे आप डाक्टर को क्यों मार रहे हैं ?'
     "मारें नहीं तो क्या करें ..इनकी आरती उतारें ? जाने कहाँ कहाँ से आकर डाक्टर बन गए हैं ,इन्हों  ने हमारे इकलौते बेटे की जान ले ली ।'
    दूसरे व्यक्ति ने तर्क दिया --"अस्पताल में आने वाला हर मरीज ठीक हो कर ही तो घर नहीं जाता ?'
    एक अन्य ने हॉ में हाँ मिलाई --"बिल्कुल,.. कुछ ठीक हो जाते हैं तो कुछ की मौत भी हो जाती है ।'
   "आप का बेटा तो चला गया... आप इस तरह मार-पीट करेंगे तो दूसरे  बहुत से मरीज बेमौत मारे  जाएगे ।'
 "वो कैसे ?'
 "आप मारपीट और तोड़-फोड़ करेंगे तो सब डाक्टर्स हड़ताल पर चले जाएगे फिर दूसरे मरीजों का  क्या होगा ?'
 "आप लोग कौन हैं  ?'
 "हम यहाँ पर भर्ती मरीजों के रिश्तेदार हैं ..दूर हटिए हम आप को डाक्टर से मार-पीट नहीं करने  देंगे.. ।'
 "हाँ भैया यदि आपका बेटा डाक्टर की गल्ती से मरा है तो आप कम्पलेन्ट कीजिए।पर....
   अपने को अकेला पड़ते देख कर वह झुंझला कर बोला ----   "आप मुझे जानते नहीं ,मैं एसे चुप नहीं बैठूँगा, अभी भैया जी को ले कर आता हूँ ।'

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--
-पवित्रा अग्रवाल
 

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Saturday, February 3, 2018

झटका

मेरे लघुकथा  संग्रह -- 'आँगन से राजपथ ' से -----
 
लघुकथा
               
    झटका                       
                                      पवित्रा अग्रवाल

         राधा को खाना बनाते देख कर वसुधा ने पूछा --- "अरे राधा तेरी आँखों को क्या हुआ ?'
 "वो आज कल आँखें लाल होने की बीमारी फैल रही है न ...वही हमें भी हो गई है...घर में सब को हो रही है।'
 "फिर तुझे काम पर नहीं आना चाहिए था ।'
 "अम्मा इस महीने वैसे ही कई छुट्टी ले ली हैं.. अब फिर घर बैठ जाऊँगी तो घर खर्च कैसे चलेगा ?'
  "पर मेरे घर में भी छोटे छोटे बच्चे हैं ... उन्हें इंफैक्शन हो गया तो...। तू जा, खाना हम बना लेंगे।...ठीक होने के बाद आ जाना ।'
 "ठीक है अम्मा आप कह रही हो तो चली जाती हूँ पर इसे डुम्मा नहीं मानना ?'
 "ठीक है अब तू जा...और हाँ अपनी सहेली को बोलना कुछ दिन के लिए वह आ कर खाना बना दे, उसे पैसे दे दूँगी ।'
 दूसरे दिन वसुधा भी उस रोग की चपेट में आ गई थी।राधा की सहेली खाना बनाने आई तो लाल आँखें  देख कर बोली - "क्या अम्मा आपको भी लग गई यह बीमारी ?'
 "हाँ लग तो ऐसा ही रहा है...रसोइ में चल तुझे बतादूँ कि क्या बनाना है ।'
 "नहीं अम्मा हम काम नहीं कर पाएगे...हमें भी हो गई तो ?'
    वसुधा को झटका सा लगा  -- "अरे ज्यादा पैसे ले लेना ।'
    पर वह जा चुकी थी ।

 
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Wednesday, January 24, 2018

लघुकथा
                   फतवा
                                                       पवित्रा अग्रवाल

      
नजमा ने जब से टी वी पर मुजफ्फरनगर की इमराना की खबर सुनी है तब से  वह बहुत परेशान है ।पाँच बच्चों की माँ इमराना ने अपने सगे ससुर पर बलात्कार का आरोप लगा कर उसे सजा दिलानी चाही थी पर उलेमाओं ने फतवा जारी कर दिया कि अब से इमराना अपने पति के लिए हराम है । वह अपने पति को बेटा माने और ससुर की पत्नी बन कर रहे ।'
 पर नजमा क्या करे, उसकी तो अभी शादी भी नहीं हुई है । उसके साथ तो सगा भाई और अब्बा दोनो बलात्कार करते रहे हैं पर वह अब तक शिकायत की हिम्मत नहीं जुटा पाई । यदि वह अब्बा और भाईजान दोनो पर पंचायत में इल्जाम लगाती है तो पता नहीं यह मौलवी और उलेमा उसके लिए क्या फतवा जारी करेंगे ?बाप की बीबी बनने को कहेंगे या भाई की ?


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