Friday, November 17, 2017

आस्तिक- नास्तिक

लघुकथा  
             आस्तिक- नास्तिक
                              
                  
                                 पवित्रा अग्रवाल

       "दादी माँ ,आप भगवान को मानती हैं ?'-- डौली ने पूछा
 "ये कैसा प्रश्न है ?...तू मुझे रोज मंदिर जाते ,पूजा पाठ करते नहीं देखती है क्या ?'
   "हाँ देखती तो हूँ । बताइए दादी माँ,कहते हैं जीवन - मृत्यु भगवान के हाथ में है...उनकी इच्छा के बिना संसार में कुछ नहीं हो सकता ।"
    "तूने बिल्कुल ठीक सुना है बिटिया, उसकी इच्छा के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता ।'
   "दादी माँ सुना है कि जोड़ियां भी ऊपर से बन कर आती हैं यानी किस की शादी किस के साथ होगी,यह पहले से तय होता है ।'
    "हाँ , यह भी सच है ...लेकिन आज सुबह सुबह तू मुझ से यह सब क्यों पूँछ रही है ?
    ऐसे सवालों को लेकर मन में कुछ उलझन थी जो सुलझ नहीं रही थी ।'
 "अब उलझन सुलझ गई ?'
 "नहीं दादी अब तो और उलझ गई है ।'
 "मुझे बता क्या उलझन है ?'
     "बुआ की शादी के एक महीने बाद ही फूफा जी की मौत हो गई थी पर उनके ससुराल वालों ने उन्हें अशुभ कह कर घर से निकाल दिया था ...उसमें बुआ का क्या दोष था ?'
    "यही तो अज्ञानता है बिटिया ,उन में इतनी समझ ही नहीं है कि भगवान की सत्ता को समझ सकें ।'
    "पर दादी आप तो सब समझती हैं फिर भैया की मौत के लिए भाभी को दोषी ठहरा कर उन्हें उनके मॉ - बाप के घर क्यों भेज दिया ? '
      खा जाने वाली आँखों से घूरते हुए - "चुप रह  छोरी ,मैं तुझे समझा नहीं सकूँगी ।...मुझ से यह सब तेरे बाप ने नहीं पूंछा ,तू कौन होती है पूछने वाली ?...नास्तिक कहीं की ।'
 "लेकिन दादी ...'
    "चुप छोरी, मेरे मंदिर जाने का समय हो रहा है,मेरा दिमाग मत चाट ।' 
             
मेरे ब्लोग्स ----

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