Tuesday, September 3, 2013

प्राणी रक्षक

लघु कथा
                                     प्राणी रक्षक
                                                                                पवित्रा अग्रवाल
 सपेरा रामू लुटा पिटा सा घर पहुँचा ।उसे देखते ही उसका बेटा चहका - "अरे बाबा आज तो नाग पंचमी हैं खूब कमाई हुई होगी ...आज तो पेट भर अच्छा खाना मिलेगा न ?'
 सपेरा चुप रहा ।
 "बाबा आप चुप क्यों हैं ? ...साँप की पिटारी भी आपके हाथ में नहीं है,क्या हुआ बाबा ?'
 "आज का दिन बहुत खराब गया बेटा ।साँप की पिटारी प्राणी रक्षक समिति के सदस्यों ने छीन ली ।'
 "क्यों बाबा ....वो उसका क्या करेंगे ?'
 "वो सांपों को जंगल में ले जा कर छोड़ देंगे ।वो कह रहे थे हम अपने धंधे के लिये सांपों को कष्ट देते हैं, जो गलत है ।'
 "उनकी यह बात तो गलत है बाबा।आपने उनसे कहा नहीं कि जानवरों पर इतनी दया आती है तो बकरीद पर कटने वाले उन लाखों निरीह बकरों को कटने से रोक कर दिखायें जिन्हें उस दिन काटा जाता है ।...सांप तो फिर भी काट कर आदमी की जान ले लेता है पर ये बकरे तो ..।'
 "क्या कहता बेटा उन्हों ने कुछ बोलने ही नहीं दिया वो तो पुलिस बुलाने की धमकी दे रहे थे ।'

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1 Comments:

At September 11, 2013 at 4:47 AM , Blogger http://bal-kishor.blogspot.com/ said...

Dhanyvad Dilbag ji laghu katha ko charcha manch par dal ne ke liye.

 

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