अय्याशी के अड्डे
लघु कथा
अय्याशी के अड्डे
देवर प्रमोद मिठाई ले कर आए थे ...उनका चेहरा खुशी से दमक रहा था।
"काहे की मिठाई है ?'
"अरे भाभी जी तन्वी को बहुत अच्छी नौकरी मिल गई है ।'
"कहाँ ?'
"डैल में ,..शुरू मे ही पंद्रह हजार देंगे ।'
"अच्छा,बहुत खुशी हुई सुन कर...बधाई ।कौल सेंटर में लगी है क्या ?'
"हाँ '
."रात की ड्यूटी रहेगी ?'
"हाँ ड्यूटी तो रात की ही रहेगी...पर डर की कोई बात नहीं है। कंपनी की गाड़ी लेने व छोड़ने आएगी ।'
"वो तो सभी कॉल सेंन्टर्स में यह व्यवस्था रहती है ।' कहते हुए मुझे तीन चार वर्ष पुरानी बात याद आ गई ।मेरी सहेली की बेटी को काल सेंटर में नौकरी मिली थी..मैं ने यह बात जब अपने इन्हीं देवर प्रमोद को बताई तो वह बुरा सा मुंह बना कर बोले थे--" अरे भाभी जी काल सैंटर तो अय्याशी के अड्डे होते हैं।'
"अय्याशी के अड्डे ' शब्द सुन का मेरा मन आहत हुआ था ,मैं ने एक तरह से उसे डपटते हुए कहा था --"तुमने भी यह क्या घटिया शब्द स्तेमाल किया है।''
"अरे भाभी जी आपकी बेटी तो काल सेंटर में नहीं है, आपको इतना बुरा क्यों लग रहा है ?'
"मेरी बेटी न सही पर दूसरों की बेटियाँ तो वहाँ काम करती हैं ,इस तरह का कमेंन्ट करना अच्छी बात नहीं हैं।
"अरे भाभी जी आप नहीं जानती बाहर क्या क्या हो रहा है ।'
मैं किसी बहस में नहीं उलझना चाहती थी अत: बात समाप्त करते हुए कहा --" मैं तो बस इतना जानती हूँ कि अच्छे बुरे लोग सब जगह होते हैं पर इस तरह की टिप्पणी करना अच्छी बात नहीं है।'
आज वही प्रमोद अपनी बेटी के काल सेंन्टर में काम मिलने की खुशी में मिठाई बाँट रहे हैं ।मन कर रहा था उनसे पूछूँ कि काल सेंटर जब इतने खराब होते हैं तो अपनी बेटी को उसमें काम करने क्यों भेज रहे हैं ?'
पवित्रा अग्रवाल
पवित्रा अग्रवाल
देवर प्रमोद मिठाई ले कर आए थे ...उनका चेहरा खुशी से दमक रहा था।
"काहे की मिठाई है ?'
"अरे भाभी जी तन्वी को बहुत अच्छी नौकरी मिल गई है ।'
"कहाँ ?'
"डैल में ,..शुरू मे ही पंद्रह हजार देंगे ।'
"अच्छा,बहुत खुशी हुई सुन कर...बधाई ।कौल सेंटर में लगी है क्या ?'
"हाँ '
."रात की ड्यूटी रहेगी ?'
"हाँ ड्यूटी तो रात की ही रहेगी...पर डर की कोई बात नहीं है। कंपनी की गाड़ी लेने व छोड़ने आएगी ।'
"वो तो सभी कॉल सेंन्टर्स में यह व्यवस्था रहती है ।' कहते हुए मुझे तीन चार वर्ष पुरानी बात याद आ गई ।मेरी सहेली की बेटी को काल सेंटर में नौकरी मिली थी..मैं ने यह बात जब अपने इन्हीं देवर प्रमोद को बताई तो वह बुरा सा मुंह बना कर बोले थे--" अरे भाभी जी काल सैंटर तो अय्याशी के अड्डे होते हैं।'
"अय्याशी के अड्डे ' शब्द सुन का मेरा मन आहत हुआ था ,मैं ने एक तरह से उसे डपटते हुए कहा था --"तुमने भी यह क्या घटिया शब्द स्तेमाल किया है।''
"अरे भाभी जी आपकी बेटी तो काल सेंटर में नहीं है, आपको इतना बुरा क्यों लग रहा है ?'
"मेरी बेटी न सही पर दूसरों की बेटियाँ तो वहाँ काम करती हैं ,इस तरह का कमेंन्ट करना अच्छी बात नहीं हैं।
"अरे भाभी जी आप नहीं जानती बाहर क्या क्या हो रहा है ।'
मैं किसी बहस में नहीं उलझना चाहती थी अत: बात समाप्त करते हुए कहा --" मैं तो बस इतना जानती हूँ कि अच्छे बुरे लोग सब जगह होते हैं पर इस तरह की टिप्पणी करना अच्छी बात नहीं है।'
आज वही प्रमोद अपनी बेटी के काल सेंन्टर में काम मिलने की खुशी में मिठाई बाँट रहे हैं ।मन कर रहा था उनसे पूछूँ कि काल सेंटर जब इतने खराब होते हैं तो अपनी बेटी को उसमें काम करने क्यों भेज रहे हैं ?'
पवित्रा अग्रवाल
पवित्रा अग्रवाल
Labels: लघु कथा
2 Comments:
वर्तमान परिवेश का अच्छा चित्रण किया है आपने इस कथा में!
aap ko mai padhti rahi hoon.meri laghu katha aapko achchi lagi jan kar harsh hua .comment dene ke liye aabhar.
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